रिचर्ड डॉकिन्स
हमारे स्कूलों में “बुद्धिमत्तापूर्ण सृष्टिरचना” का सिद्धांत [अर्थात जीवन या ब्रह्मांड की रचना और निर्माण संयोग से नहीं, बल्कि किसी बुद्धिमान सत्ता का सुविचारित कार्य है] पढ़ाया जा रहा है; शिक्षकों से क्रमिक-विकास के सिद्धांत से जुड़े “विवादों के विषय में पढ़ाने” का सानुरोध आग्रह किया जा रहा है। जबकि कोई विवाद है ही नहीं। डॉकिन्स ने वैज्ञानिक प्रमाणों के समृद्ध संस्तरों की गहराई से छानबीन कर – प्राकृतिक चयन के जीवंत उदाहरणों से लेकर जीवाश्म वृत्त के अंदर दबे सुरागों तक; विशाल युगों को चिह्नित करने वाली प्राकृतिक घड़ियों से लेकर, जिनमें क्रमिक-विकास विकासशील भ्रूण की जटिलताओं में किसी बाह्य हस्तक्षेप की आवश्यकता के बिना अपना प्राकृतिक विकास पूरा करता है; प्लेट टेक्टोनिक्स से लेकर आणविक आनुवंशिकी तक पड़ताल की है – जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि “हम अपने आपको जीवन के पुष्पित-पल्लवित होते वृक्ष के बीच एक छोटी सी टहनी पर बैठा हुआ पाते हैं और यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि अक्रमिक प्राकृतिक चयन द्वारा क्रमिक-विकास का प्रत्यक्ष परिणाम है। प्राकृतिक जगत के प्रति उनका अनथक उत्साह जो सृजनवादी दृष्टि की निरर्थकताओं को उजागर करने वाला नकारात्मक तर्क होता, पाठकगण के लिए एक सकारात्मक प्रस्तुति में बदल जाता है: जो अपनी समस्त भव्यता में जीवन की शानदार दृष्टि से कुछ कम नहीं है।